जीवन की राह
कई बार ऐसा होता है
की कुछ लिखना चाहूंँ मैं
कुछ दिल के दर्द कम करना चाहूंँ मैं
कि अपनी ही सोच मुझे रोक देती है
क्यूँ लगता है मुझे जीवन में गम है
जीवन तो बस एक राह है
जो बिना किसी दिशा के , बिना किसी सोच के
बस, चलती जा रही है
किसने कहा की उसका कोई सार है
वो तो बस सागर की लहरों जैसे बहती है
किसने कहा की उस राह की दिशा बदलो
किसने कहा की उस राह को छोडो
किसने समझाया की उस बहाव में तैरौ
जीवन की परिभाषा क्यूँ ढूंढती हूँ मैं
जीवन से ये लड़ाई क्यूँ लडती हूँ मैं
क्यूँ नहीं सीखा मैंने भी सिर्फ चलना
क्यूँ हर कदम खुद को रोकती हूँ मैं
कुछ नहीं है जीवन अगर थम जाए राह में तो
बस चलना और बहना ही सार है
तो फिर ये दर्द , ये काल्पनिक दर्द
क्यूँ पकड़ कर थम जाना चाहती हूँ मैं ।
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